VARANASI NEWS:-क्या कोरोना का नाश करेंगी गंगा ? घाट किनारे हुए रिसर्च ने बीएचयू के डॉक्टरों को हैरत में डाला
VARANASI NEWS:-क्या कोरोना का नाश करेंगी गंगा ? घाट किनारे हुए रिसर्च ने बीएचयू के डॉक्टरों को हैरत में डाला

वाराणसी। भारत की सबसे पवित्र नदी और हिन्दुओं के लिये पतित पावनी और मोक्षदायनी मां गंगा कलियुग में भी लोगों के पाप-संताप, रोग-क्लेश हरने की ताकत रखती हैं। ये महज कोरी मिथकीय कल्पना नहीं बल्कि हकीकत का रूप लेने जा रही एक शोध रिपोर्ट है। समूचे भूमंडल पर हाहाकार मचाकर रख देने वाले नोवल कोरोना वायरस के खात्मे के लिये दुनियाभर के डॉक्टर्स और वैज्ञानिक शोध में जुटे हुए हैं। इधर वाराणसी में भी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सीनियर चिकित्सक अब इस बात का पता लगाने में जुटे हैं कि क्या गंगाजल से कोरोना को मात दिया जा सकता है। रिसर्च के शुरुआती आंकड़ों ने तो जैसे डॉक्टरों के भी होश उड़ा दिये हैं।
130 साल पुराने रिसर्च से जगी उम्मीद
बीएचयू स्थित सर सुंदरलाल अस्पताल के पूर्व एमएस और जाने माने न्यूरोलॉजिस्ट डॉ विजय नाथ मिश्र ने इंटरनेशनल जर्नल ऑफ माइक्रोबायोलॉजी में प्रकाशित होन जा रही उनकी रिपोर्ट में ये दावा किया है कि गंगा में मिलने वाले बैक्टीरियोफेज से कोरोना का इलाज संभव है। डॉ विजय नाथ मिश्र के अनुसार यह शोध 130 साल पुराना है।
Live VNS ने की विशेष बातचीत
कोरोना से इलाज के लिए बनने वाली वैक्सीन के लिए गंगा को किस प्रकार से इस्तेमाल में लाया जाएगा और 130 साल पहले किसने इसपर शोध किया था इस बात को जानने के लिए Live VNS टीम ने डॉ विजय नाथ मिश्र से ख़ास मुलाकात की है। पेश है इस ख़ास बातचीत के मुख्य अंश।
1896 में कालरा को गंगा किनारे वालों ने दिया था मात
डॉ विजय नाथ मिश्र ने इस शोध के बारे में पहले ही ये स्पष्ट कर दिया कि गंगाजल की पवित्रता और रोग नाशक क्षमता को लेकर किया गया शोध उनका नहीं है। डॉ मिश्र के अनुसार ये 130 साल पुराना शोध है। 1896 में डॉक्टर हर्षले ने कहा था कि जब कालरा महामारी फैली तो जो लोग गंगा किनारे रह रहे थे उन्हें कालरा नहीं हो रहा था। उस समय ये बात आयी तो किसी को पता नहीं चला की ऐसा क्यों हो रहा है।
जार्जिया में होता है फेज़ से इलाज
डॉ विजय नाथ मिश्र ने बताया कि उसके करीब 30 -40 वर्ष बाद ये पता चला कि गंगा में विशेष प्रकार के वायरस होते हैं, जिनको हम फेज़ वायरस कहते हैं। ये वायरस बैक्टीरिया को मारते हैं इसलिए इन्हे हम बैक्टीरियोफेज वायरस कहते हैं। उन्होंने बताया कि बैक्टीरियोफेज वायरस के ऊपर पूरी दुनिया में रिसर्च हो रहा है और जार्जिया दुनिया का एकलौता देश है, जहां इलाज के दौरान एंटीबायटिक नहीं यूज़ करते, बल्कि वहां फेज़ ही यूज़ करते हैं। इसके अलावा जहां जहां भी बैक्टेरिया को मारने में दिक्कत होती है वहां भी वैज्ञानिक फेज़ का यूज़ करते हैं, ये हर कोई जानता है।
कुल 12 सौ प्रकार के फेज़
डॉ विजय नाथ मिश्र ने बताया कि हम लोगों ने ये प्रपोज़ किया था कि गंगा जी के जो फेस हैं, ये दुनिया में सबसे अलग हैं और ये कुल 1200 प्रकार के फेज़ हैं, क्यों न इन फेज़ेज़ को हम कोरोना के अगेंस्ट यूज़ करें। इसे देखते हुए हम लोगों ने एक शोध पत्र लिखा जो अंतरराष्ट्रीय जर्नल में छपा। उसमें हम लोगों ने यही लिखा है कि आप ड्रग रिपर्पजिंग कर सकते हैं, मतलब जो बैक्टेरिया वायरस मारता है, उस फेज़ वायरस से हम कोरोना को भी मार सकते हैं, जिसे वायरोफेज़ कहते हैं।
शुरुआती सैंपलिंग ने चौंका दिया
बीएचयू अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक और पूर्व एमएस प्रो. डॉ वीएन मिश्र की अगुवाई में डाक्टरों की टीम ने कोरोना की सैंपलिंग घाट के किनारे रहने वाले लोगों पर की है। इस दौरान घाट किनारे रहने वाले तथा नियमित रूप से गंगा स्नान व आचमन करने वाले पंडा, पुजारी, डोम, मल्लाह और साधुओं की सैंपलिंग की गयी है और हैरान करने वाली बात ये है कि सभी की रिपोर्ट निगेटिव मिली है।
नियमित गंगा स्नान वालों पर है वायरस का कम असर
बीएचयू के न्यूरोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. रामेश्वर चौरसिया, न्यूरोलाजिस्ट प्रो. वीएन मिश्रा की अगुवाई में टीम ने प्रारंभिक सर्वे में पाया है कि नियमित गंगा स्नान और गंगाजल का किसी न किसी रूप में सेवन करने वालों पर कोरोना संक्रमण का तनिक भी असर नहीं है। टीम का दावा है कि स्नान करने वाले 90 फीसदी लोग कोरोना संक्रमण से बचे हुए हैं। इसी तरह गंगा किनारे के 42 जिलों में कोरोना का संक्रमण बाकी शहरों की तुलना में 50 फीसदी से कम और संक्रमण के बाद जल्दी ठीक होने वालों की संख्या ज्यादा है।
गोमुख से गंगा सागर तक सैंपलिंग
रिसर्च टीम के लीडर प्रो. वीएन मिश्र ने बताया कि स्टडी के साथ ही गोमुख से लेकर गंगा सागर तक सौ स्थानों पर सैंपलिंग हुई। इसके अलावा कोरोना मरीजों की फेजथेरेपी के लिए गंगाजल का नेजल स्प्रे भी तैयार कराया गया है। इस पूरी कवायद की डिटेल रिपोर्ट आईएमएस की एथिकल कमिटी को भेज दी गई है। प्रो. वी. भट्टाचार्या के चेयरमैनशिप वाली 12 सदस्यीय एथिकल कमिटी की मंजूरी के बाद कोरोना मरीजों पर फेजथेरेपी का ट्रायल शुरू होगा।
ऐसे होगा ट्रायल
गंगोत्री से करीब 35 किलोमीटर नीचे गंगनानी में मिलने वाले गंगाजल का ह्यूमन ट्रायल में प्रयोग किया जाएगा। सहमति के आधार पर 250 लोगों पर ट्रायल होगा। इसमें से आधे लोगों को दवा से छेड़छाड़ किए बिना एक पखवारे तक नाक में डालने के लिए गंगनानी से लाया गया गंगाजल और बाकी को प्लेन वॉटर दिया जाएगा। इसके बाद परिणाम का अध्ययन कर रिपोर्ट इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च आईसीएमआर को भेजी जाएगी।
ये है रिसर्च टीम
बीएचयू के पूर्व एमएस डॉ विजय नाथ मिश्र ने बताया कि यदि ये रिसर्च कामयाब होता है तो इससे सस्ती दवा और कहां मिलेगी। उन्होंने बताया कि बैक्टीरियोफॉज से कोरोना के इलाज पर रिसर्च करने वाली टीम में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च आईआईटीआर लखनऊ के वैज्ञानिक डॉ. रजनीश चतुर्वेदी को भी शामिल किया गया है। टीम के सदस्यों में बीएचयू के डॉ. अभिषेक, डॉ. वरुण सिंह, डॉ. आनंद कुमार व रिसर्च स्कॉलर निधि तथा इलाहाबाद हाईकोर्ट के एमिकस क्यूरी एडवोकेट अरुण गुप्ता शामिल हैं।
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